What is Internet and its History (इंटरनेट का इतिहास)
इन्टरनेट क्या है : Internet
जिसको की short मे
net भी कहा जाता है अनगिनत एवं आपस मे connected
computer network का समूह है जिसकी help
से आप एक computer से
दूसरे computer पर सभी तरह की information
को exchange कर
सकते है | सभी computers
को internet से
connect करने के लिए बहुत सारी organizations
एक managed way मे
TCP/IP एवं other
technologies को use करते
हुए servers, switches, routers, fiber cables आदि
की help से internet को
globally connect करती है |
इंटरनेट को कोई एक company own नहीं
करती लेकिन world की बहुत सारी organizations
आपस मे collaborate करके
इसकी proper functioning and development को
ensure करती है |
High-speed fiber-optic cables इंटरनेट का backbones
है and esko world के
अलग अलग countries मे telephone
companies own करती है ये fiber cables
Internet का सबसे बड़ा communication medium है
जिस पर world मे internet
का data travels करता
है |
Internet
इस प्रकार इंटरनेट के लिए हम कह सकते है की
यह हज़ारो small networks का
group है जिसमे बहुत सारे छोटे बड़े private,
public, business, education या फिर government
network आपस मे wired or wireless medium
से connect होकर
data exchange करते है |
इंटरनेट हिस्ट्री – 1950
का time था
जब electronic computers का development
start हुआ था एवं digital communication के
बारे मे सोचा जाने लगा था | United States की
top universities को लगा की उनके पास कोई
ऐसा tool होना चाहिए जिससे की information
sharing and accessing मे ज्यादा time न
लगे and easy भी हो जिससे की वो research
data को time waste किये
बिना transfer कर पाए |
उन्ही दिनों मे US defense भी
digital network and network data system पर
research कर रही थी |
इसी सोच के साथ US Department of Defense
ने Late 1950 मे
ARPANET एवं packet
network systems के development के
लिए US की universities को
contact किया और इसके लिए research
करने के लिए कहा | Uske baad Early
1960 मे packet switching पर
research start हुई एवं late
1960 मे अलग अलग protocol को
use करते hue packet switched
networks such as the ARPANET, CYCLADES, the Merit Network, NPL network, Tymnet,
and Telenet, develop किये गए |
इसमें ARPANET project मे
inter-networking protocols को
डेवलप किया गया जिसमे बहुत सारे separate networks को
single network of networks मे
join किया जा सकता था |
ARPANET को two network nodes से
develop करना start
किया गया जो की दो अलग अलग location
से connected थी
| उसके बाद ARPANET ने
1971 के end तक
fifteen sites आपस मे connected
करने मे सफलता प्राप्त कर ली थी |
यहाँ पर expert को
समझ आ चुका था की इस interconnection tool मे
कितना potential एवं future
है | जब
1981 मे National Science
Foundation (NSF) ने Computer Science Network
(CSNET) को fund किया
तो ARPANET को और ज्यादा एक्सपेंड
किया गया और जब 1982 मे Internet
Protocol Suite (TCP/IP) standardized अपनाया गया तो फिर
worldwide सभी network
को आपस मे connect किया
जाने लगा | फिर 1984
मे domain name का
concept start हुआ तो यह internet
की क्रांति की शुरुआत था जो की World
Wide Web के existence के
बाद आगे बढ़ता गया |
Web Server
Web Server:- Web Server ब्राउजर को Web Page तथा Website उपलब्ध कराने में अहम भूमिका निभाता है।
यह एक तरह की तकनीक है, जो हमें, वेब
के साथ छोड़ती है। कई बडी कम्पनियों का अपना स्वयं का Web Server होता है, लेकिन अधिकांश निजी तथा छोटी कम्पनियाँ वेब
सर्वर किराये पर लेती है। यह सुविधा उसे इन्टरनेट एक्सेस कम्पनी द्वारा प्रदान की
जाती है। बिना सर्वर के कोई वेब नहीं हो सकता है। यहाँ इन्टरनेट पर लाखों वेब
सर्वर हैं और प्रत्येक में हजारों Home Page शामिल रहते हैं। Web server software सारे प्रचलित आँपरेटिंग सिस्टम
पर उपलब्ध रहता है। इसमें Unit के विण्डोज एन. टी. सर्वर (NT
Workstation) तथा एनं. टी. वर्कस्टेशन (Windows NT Server) शामिल हैं। वेब सर्वर Software, Hardware तथा Oprating System के संयोग पर आधारित है, जो अपने-अपने सर्वर
प्लेटफॉर्म के लिए चुनाव में आसानी से रन करता है।
Windows पर आधारित कुछ वेब
सर्वर निम्न हैं-
1. microsoft internet information server
2. netscape fasttrack server
3. netscape enterprise server
4. Open market scure webserver
5. purveyar intra server
1. microsoft internet information server
2. netscape fasttrack server
3. netscape enterprise server
4. Open market scure webserver
5. purveyar intra server
List tag
html मुख्यतः तीन प्रकार की सूचीयो का समर्थन करता है। जिसमे क्रमबध्द रहित बुलेट सूची, क्रमबध्द नंबर सूची एवं परिभाषित सूची
बना सकते है। विभिन्न Tag की सहायता से html मे आप आसानी से सूची बना सकते है। दोनो Ordered और Unordered
सूची बनाने के लिये सूची के आरंभ तथा अंत मे Tag देना जरूरी है। साथ ही एक स्पेशल Tag जो यह बताता है
कि प्रत्येक सूची घटक कहां से चालू होती है।
1. Unordered List
2. Order List
3. Definetion List
1. Unordered List- कोई बिना संख्या वाली सूची ऐसी सूची होती है। जिसमे प्रत्येक असंख्यात्मक चिन्ह से प्रारंभ होता है जिसे बुलेट कहा जाता है। इन्हे Unordered List स्पेज भी कहते है। html मे ऐसी सूची <ul> Tag से बनाई जाती है। Syntex :-
<ul>
<li> coffee </li>
<li> tea </li>
<li> milk </li>
</ul>
Output-
1. coffee
2. tea
3. Milk
2. Order List
3. Definetion List
1. Unordered List- कोई बिना संख्या वाली सूची ऐसी सूची होती है। जिसमे प्रत्येक असंख्यात्मक चिन्ह से प्रारंभ होता है जिसे बुलेट कहा जाता है। इन्हे Unordered List स्पेज भी कहते है। html मे ऐसी सूची <ul> Tag से बनाई जाती है। Syntex :-
<ul>
<li> coffee </li>
<li> tea </li>
<li> milk </li>
</ul>
Output-
1. coffee
2. tea
3. Milk
Type एट्रीब्यूट
ब्राउजर प्रोग्राम किसी Unordered List के प्रत्येक आइटम से
पहले एक बुलेट चिन्ह लगाता है
इस एट्रीब्यूट के तीन मान हो सकते है-
इस एट्रीब्यूट के तीन मान हो सकते है-
Disc
Circle
Square
1. Disc- Disc Tag लगाने से ऊपर की तरह ठोस वृत दिखाई देता है। Syntex :-
<ul type=”disc”>
<li>Coffee</li>
<li>Tea</li>
<li>Milk</li>
</ul>
Output-
<ul type=”disc”>
<li>Coffee</li>
<li>Tea</li>
<li>Milk</li>
</ul>
Output-
Disc
Circle
Square
2. Circle- Circle Tag लगाने से खाली बुलेट के रूप मे दिखाई देते है।
Syntex :-
<ul type=”circle”>
<li>Coffee</li>
<li>Tea</li>
<li>Milk</li>
</ul>
Output-
Syntex :-
<ul type=”circle”>
<li>Coffee</li>
<li>Tea</li>
<li>Milk</li>
</ul>
Output-
Coffee
Tea
Milk
3.
Square- Square Tag लगाने से ठोस वर्ग बुलेट के रूप मे दिखाई पडता है।
<ul type=”square”>
<li>Coffee</li>
<li>Tea</li>
<li>Milk</li>
</ul>
Output-
<li>Coffee</li>
<li>Tea</li>
<li>Milk</li>
</ul>
Output-
Coffee
Tea
Milk
2. Order
List- कोई संख्यात्मक सूची किसी गैर संख्यात्मक
सूची से मिलती है। अंतर केवल यह है कि यह किसी संख्या अथवा इसके समतुल्य चिन्ह से
प्रारंभ होती है। इसे Ordered List कहते है, HTML मे यह सूची <ol> Tag से बनाई जाती है।
Syntex :-
<ol>
<li>Coffee</li>
<li>Tea</li>
<li>Milk</li>
</ol>
Output-
1. Coffe
2. Tea
3. Milk
<ol>
<li>Coffee</li>
<li>Tea</li>
<li>Milk</li>
</ol>
Output-
1. Coffe
2. Tea
3. Milk
3. Difinition List- Difinition List एक अन्य प्रकार की List होती है जो Ordered तथा Unordered List से थोडी अलग होती है। इसे डिफाइनेशन सूची भी कहा जाता है। HTML मे यह List <dl> Tag से बनाई जाती है।
<dl>
<dt>Coffee</dt>
<dd>Black hot drink</dd>
<dt>Milk</dt>
<dd>White cold drink</dd>
</dl>
Output-
Coffee
Black hot drink
Milk
White cold drink
<dt>Coffee</dt>
<dd>Black hot drink</dd>
<dt>Milk</dt>
<dd>White cold drink</dd>
</dl>
Output-
Coffee
Black hot drink
Milk
White cold drink
Table tag
Table Tag- Html मे सारणी बनाने के लिये Table Tag का उपयोग किया जाता है। किसी Table का तत्व का
सामान्य रूप निम्न प्रकार है-
<table>
Table Data
</table>
Table Data
</table>
इससे स्पष्ट है कि सारणी
बनाने का प्रारंभ <Table> Tag से किया जाता है और समापन </table> Tag से
किया जाता है। इन दोनो के बीच मे Table के Data को परिभाषित किया जाता है। इस Data मे Table का नाम प्र्रत्येक पंक्ति के प्रत्येक सैल की परिभाषा आदि शामिल होती है।
इनको परिभाषित करने के लिये विभिन्न Tag का उपयोग किया जाता
है।
Table Tag मे कई एट्रीव्यूट हो सकते है, जैसे- width, border, cellpadding, cellspacing, bgcolor आदि। Td Tag- सारणी के किसी सैल को परिभाषित करने के लिये <td> Tag का उपयोग किया जाता है। इसका पूरा रूप है- table data इस टैग मे एक सैल की सामाग्र्री उसके विभिन्न एट्रीव्यूट के साथ दी जाती है। <td> टैग का उपयोग इच्छानुसार कितनी भी बार किया जा सकता है। Example के लिये यदि हम केवल एक सैल वाली सारणी बनाना चाहते है, तो उसे निम्न प्रकार बना सकते है-
Example:-
Table Tag मे कई एट्रीव्यूट हो सकते है, जैसे- width, border, cellpadding, cellspacing, bgcolor आदि। Td Tag- सारणी के किसी सैल को परिभाषित करने के लिये <td> Tag का उपयोग किया जाता है। इसका पूरा रूप है- table data इस टैग मे एक सैल की सामाग्र्री उसके विभिन्न एट्रीव्यूट के साथ दी जाती है। <td> टैग का उपयोग इच्छानुसार कितनी भी बार किया जा सकता है। Example के लिये यदि हम केवल एक सैल वाली सारणी बनाना चाहते है, तो उसे निम्न प्रकार बना सकते है-
Example:-
<table>
<td> one cell table </td>
</table>
Output-
one cell table
Border एट्रीव्यूट – ऊपर के उदाहरण की सारणी मे किसी बाॅर्डर का उपयोग नही किया जा सकता है। यदि हम बार्डर भी दिखाना चाहते है, तो हमे <table> tag के साथ border एट्रीव्यूट का उपयोग करना होगा। इसका सामान्य रूप निम्न प्रकार है-
<table border= “1”>
<td> one cell table </td>
</table>
<td> one cell table </td>
</table>
Output-
one cell table
Border एट्रीव्यूट – ऊपर के उदाहरण की सारणी मे किसी बाॅर्डर का उपयोग नही किया जा सकता है। यदि हम बार्डर भी दिखाना चाहते है, तो हमे <table> tag के साथ border एट्रीव्यूट का उपयोग करना होगा। इसका सामान्य रूप निम्न प्रकार है-
<table border= “1”>
<td> one cell table </td>
</table>
Output-
one cell table
|
इस table मे एक से अधिक cell निम्न प्रकार जोड सकते है.
<table border= “2”>
<td> first cell
table </td>
<td> second cell </td>
<td> third cell
</td>
</table>
Output-
first cell
|
second cell
|
third cell
|
Width एट्रीव्यूट- ऊपर के उदाहरण की सारणी की कोई चैडाई नही दी
गई है। जब चैडाई नही दी जाती है, तो उसकी चैडाई एक पंक्ति के सभी सैलो की चैडाई के योग के बराबर होती है।
हम चाहे तो सारणी की चैडाई Width एट्रीव्यूट द्वारा दे सकते
है। इसका सामान्य रूप निम्न प्रकार है-
<table border= “2” width=”500″ >
<td> first cell
table </td>
<td> second cell
</td>
<td> third cell
</td>
</table>
Output-
first cell
|
second cell
|
third cell
|
Tr Tag पंक्तियाँ जोडना– अभी तक के सभी उदाहरणो मे केवल एक पंक्ति है। यदि हम सारणी
मे एक से अधिक पंक्तियाँ देना चाहते है, तो उसके लिये
<tr> tag का उपयोग किया जाता है। tr का
पूरा रूप है Table Row.
उदाहरण के लिये हम दो पंक्तियो वाली एक सारणी हम निम्न प्रकार बना सकते है.
उदाहरण के लिये हम दो पंक्तियो वाली एक सारणी हम निम्न प्रकार बना सकते है.
<table border= “2” width=”500″ >
<tr>
<td> first cell
table </td>
<td> second cell
</td>
<td> third cell
</td>
</tr>
<tr>
<td> first cell of
2nd row </td>
<td> second cell of
2nd row </td>
<td> third cell of
2nd row </td>
</tr>
</table>
Output-
first cell
|
second cell
|
third cell
|
first cell of 2nd row
|
second cell of 2nd row
|
third cell of 2nd row
|
HTML Tags
HTML-किसी HTML का पहला व अंतिम Tag HTML ही होता है। इस Tag के बीच मे अन्य सभी Tag का उपयोग किया जाता है।
Syntex :-
<html/>
……………..
</html/>
<html/>
……………..
</html/>
2.Head Tag – यह टैग हमारी सभी Web File की सम्पूर्ण जानकारी रखता है। यह HTML टैग के बीच में लगाया जाता है। यहाँ अन्य टैग को भी रख सकते हैं।
Syntex :-
<html>
<head>
………………..
</head>
</html>
3. Title Tag- यह Tag Head के बाद लिखा जाता हैं। यह Web Page के Title को बताता है। यह Title के File पर दिखाई देता हैं।
<html>
<head>
………………..
</head>
</html>
3. Title Tag- यह Tag Head के बाद लिखा जाता हैं। यह Web Page के Title को बताता है। यह Title के File पर दिखाई देता हैं।
Syntex :-
<html>
<head>
<title>
my page
</title>
</head>
</ html>
इससे हमारे Web Page का Title My page दिखाई देगा। यदि Title नहीं दिया जाता है तो यह Untitiled या URL बताता है ।
4. Body Tag- Body Tag, Head Tag के पूरक के रूप में कार्य करता है। यह Tag किसी Web Page की संरचना में आने वाले प्रत्येक भाग को दर्शाता है। यह Head Tag के बाद में आता है Head Tag, Body Tag का एक अन्य भाग बनाता है।
Syntex :-
<html>
<head>
<title>
my first web page
</title>
< /head>
<body>
……………..
</body>
</html>
Tag Case Sensitive नहीं होते हैं, अर्थात हन्हें छोटे या बड़े किसी भी प्रकार के अक्षरों में लिख सकते हैं।
<html>
<head>
<title>
my page
</title>
</head>
</ html>
इससे हमारे Web Page का Title My page दिखाई देगा। यदि Title नहीं दिया जाता है तो यह Untitiled या URL बताता है ।
4. Body Tag- Body Tag, Head Tag के पूरक के रूप में कार्य करता है। यह Tag किसी Web Page की संरचना में आने वाले प्रत्येक भाग को दर्शाता है। यह Head Tag के बाद में आता है Head Tag, Body Tag का एक अन्य भाग बनाता है।
Syntex :-
<html>
<head>
<title>
my first web page
</title>
< /head>
<body>
……………..
</body>
</html>
Tag Case Sensitive नहीं होते हैं, अर्थात हन्हें छोटे या बड़े किसी भी प्रकार के अक्षरों में लिख सकते हैं।
HTTP
1. HTTP- यह इंटरनेट पर सूचनाओ को स्थानांतरित करने का एक प्रोटोकॉल
है। इसका पूरा नाम हाइपरटैक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकॉल है। इसी प्रोटोकॉल के उपयोग ने
बाद मे वर्ल्ड वाइड वेब को जन्म दिया था। इस प्रोटोकॉल
का विकास वर्ल्ड वाइड वेब कोंसोर्टियम तथा इंटरनेट
इंजीनियरिंग टास्क फोर्स ने सम्मिलित रूप से किया था।
यह एक स्टैण्डर्ड इंटरनेट प्रोटोकॉल है । यह वेब ब्राउजर जैसे माइक्रोसॉफ्ट इंटरनेट एक्सप्लोरर और वेब सर्वर जेसे माइक्रोसॉफ्ट इंटरनेट इनफार्मेशन सर्विसेस (IIS) के बीच क्लाइंट/सर्वर इंटरेवशन प्रोसेस (आदान-प्रदान की
प्रक्रिया ) को स्पेसीफाय (वर्णित) करता है।
यह एक स्टैण्डर्ड इंटरनेट प्रोटोकॉल है । यह वेब ब्राउजर जैसे माइक्रोसॉफ्ट इंटरनेट एक्सप्लोरर और वेब सर्वर जेसे माइक्रोसॉफ्ट इंटरनेट इनफार्मेशन सर्विसेस (IIS) के बीच क्लाइंट/सर्वर इंटरेवशन प्रोसेस (आदान-प्रदान की
प्रक्रिया ) को स्पेसीफाय (वर्णित) करता है।
वास्तविक
हाहपरटैक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकॉल 1.0 एक स्टेटलेस (अवस्था रहित) प्रोटोकाॅल है, जिसके द्वारा वेब ब्राउजर वेब सर्वर से कनेक्शन (जुड़ता) करता है व उपयुक्त
फाइल को डाउनलोड करता है ओर फिर कवेवशन खत्म करता है। ब्राउजर सामान्यतया एक फाइल
के उपयोग के लिए HTTP से रिक्वेस्ट करता है। GET मेथड TCP पोर्ट 80 पर
रिक्वेस्ट करती है, जिसमे HTTP रिक्वेस्ट
हेडर की सीरीज होती है, जो ट्रांजेक्शन मेथड (GET,
POST, HEAD) इत्यादि को परिभाषित करती है और साथ ही सर्वर को
क्लाइंट की क्षमता को बताती है। सर्वर HTTP रिस्पोन्स हेडर
की सीरीज को रिस्पोन्स देता है, जो दर्शाता है कि
ट्रांजेक्शन सफल रहा है कि नहीं, किस प्रकार डेटा भेजा गया
है, सर्वर का प्रकार और जो डेटा भेजा गया था, इत्यादि IIS 4 प्रोटोकॉल के उस नए वर्जन को
HTML Editors & image editors
HTML
Editor- कोई वेब पेज वास्तव मे एक टेक्स्ट फाइल
होती है, जिसमे
किसी हाइपरटैक्स्ट भाषा जैसे एचटीएमएल के व्याकरण के अनुसार कोड दिया होता है। इसी
कोड को बाद मे ब्राउजर द्वारा वेब पेज मे बदलकर दिखाया जाता है। ऐसे प्रोग्राम
जिनमे एचटीएमएल कोड को बनाया या सुधारा जाता है, एचटीएमएल
एडीटर (html editor) कहा जाता है। इस कार्य के लिये आप
साधारण टैक्स्ट एडिटरो जैसे नोटपैड (Notepad) और वर्डपैड (Wordpad)
एमएस वर्ड (MS-Word) आदि का भी उपयोग कर सकते
है।
सधारण
टैक्स्ट एडिटरो या वर्ड प्रोसेसरो के अलावा कई विशेष प्रोग्राम भी होते है, जो केवल वेब पेज तैयार करने और उसके
एचटीएमएल कोड को सम्पादित करने के लिये बनाये गये है जैसे Microsoft
Frontpage, नेटस्केप कम्पोजर (Netscape Composer) आदि। इनमे वेब पेज तैयार करने की विशेष सुविधाए होती है। अतः आप इनका
उपयोग कर सकते है। Image Editor- सामान्यतया कोई भी वेबसाइट चित्रो के बिना पूरी नही होती। सफल वेबसाइट के
लिये पाठ्य के साथ ही चित्रो तथा मल्टीमीडिया सामाग्री को भी पडना पडता है।
वेबसाइट मे चित्रो को लगाने के लिये हमे चित्रो को अपनी आवश्यकता के अनुसार
सुधारने की भी आवश्यकता होती है। कई चित्र हमे स्वयं भी बनाने पड सकते है, जैसे किसी कंपनी का लोगो आदि।चित्र
संबंधी कार्यो के लिये हमे विशेष प्रोग्रामो की आवश्यकता होती है, जिन्हे ग्राफिक सॉफ्टवेयर और इमेज एडिटर कहा जाता है। कोरलड्रा, फोटोपेण्ट और फोटोशाप इन कार्यो के लिये सबसे
अधिक प्रचलित सॉफ्टवेर है। इनके अतिरिक्त
बहुत से इमेज एडिटर इंटरनेट पर मुफ्त मे उपलब्ध है, जिनको
डाउनलोड करके उपयोग मे लाया जा सकता है। वास्तव मे चित्र अनेक प्रकार के Famat मे
उपलब्ध हेाते है। उनको बनाने या सुधारने के लिये विशेष सॉफ्टवेर की आवश्यकता होती
है। वैसे एडोव फोटोशाॅप मे आप प्रायः सभी प्रकार के चित्रो को खोल सकते है और
सुधार सकते है।
Web Publishing
कोई वेबसाइट तैयार करने और
उसके पूरा हो जाने पर किसी होस्ट सर्वर पर अपलोड करने की प्रक्रिया को वेब
पब्लिशिंग कहा जाता है।
वेब पब्लिशिंग के प्रकार- कोई वेबसाइट तैयार करके उसे इंटरनेट पर
सबके उपयोग के लिये डालने की प्रक्रिया एक लम्बी प्रक्रिया है, जो किसी पुस्तक के प्रकाशन की तरह कई
चरणो मे पूरी की जाती है। इस पूरी प्रक्रिया को हम निम्नलिखित पाच चरणो मे बाट
सकते है-
1. डोमेन नाम का रजिस्ट्रेशन करना।
2. वेब होस्टिंग।
3. वेबसाइट डिजाइन और विकास।
4. प्रचार या प्रमोशन।
5. रखरखाव।
किसी सफल वेबसाइट के लिये ये सभी चरण महत्वपूर्ण है।
1. डोमेन नेम रजिस्ट्रेशन- किसी वेबसाइट का डोमेन नाम उसका ऐसा नाम या पता है जिससे इंटरनेट के उपयोगकर्ता द्वारा उसको पहचाना और देखा जाता है। वेब प्रकाशन का पहला चरण उस वेबसाइट के लिये कोई डोमेन नाम तय करना और किसी वेब सर्वर पर उस डोमेन नाम को पंजीकृत करना होता है।
डोमेन नेम चुनना- अपनी वेबसाइट के लिये डोमेन नाम का चयन आपको स्वयं करना होता है। यह नाम ऐसा होना चाहिये जो पहले से किसी अन्य वेबसाइट का ना हो और आपकी साइट के उददेश्य तथा सामाग्री का संकेत देता हो। सामान्यतः कोई कंपनी अपने नाम जैसा ही डोमेन नाम पंजीकृत कराता है यदि वह उपलब्ध हो। यदि वह उपलब्ध नही है तो उससे मिलता जुलता कोई नाम लिया जा सकता है, जो उपलब्ध हो।
वेबसाइट के लिये डोमेन नाम चुनते समय निम्नलिखित बातो को ध्यान मे रखना चाहिए-
1. डोमेन नेम ऐसा होना चाहिए जो आपका या आपकी कंपनी का या आपके ब्रांड का नाम हो। ऐसा करने से आपके ग्राहको को आपकी वेबसाइट तक पहुचना सरल होगा, क्योकि किसी भी व्यक्ति के लिये भिन्न नामो को याद रखना संभव नही होता है।
2. डोमेन नाम जितना छोटा हो, उतना ही अच्छा रहता है। छोटे नामो को याद रखना या टाइप करना भी सरल होता है। डोमेन नाम 67 अक्षरो जितने लंबे भी हो सकते है।
3. डोमेन नेम मे हाइफन (-) या डैश (-) का उपयोग सामान्यतया: नही होना चाहिए।
4. डोमेन नेम मे कैपीटल अक्षरो के प्रयोग से बचना चाहिए। सामान्यतः सभी डोमेन नाम छोटे अक्षरो मे रखे जाते है।
5. डोमेन नेम मे बहुवचन का प्रयोग नही होना चाहिए, क्योकि कई बार उपयोगकर्ता बहुवचन अर्थात अक्षर टाईप करना भूल जाते है। इससे गलत वेबसाइट खुल जाती है।
6. डोमेन नेम मे आपकी साइट के उददेश्य का भी पता चलता है। अतः यदि आपकी साइट परोपकारी या स्वयंसेवी संस्था है, तो आपको कभी भी .COM नाम नही लेना चाहिए। इसके बजाह ण्वतह वाला डोमेन नाम लेना चाहिए।
यदि आप इन बातो का ध्यान मे रखते हुए अपना डोमेन नाम तय करेगे तो आपकी वेबसाइट के सफल होने की अधिक संभावना होगी।
डोमेन नाम पंजीकृत कराना- डोमेन नेम रजिस्ट्रि जिसे नेटवर्क इनफाॅमेशन सेटंर जाता है, डोमेन नाम सिस्टम का एक भाग है जो डोमेन नामो को IP Address मे बदलता है। यह एक संगठन है जो डोमेन नाम के पंजीकरण का प्रबंध करता है।डोमेन नाम आवंटित करने की नीति बनाता है और उच्च स्तरीय डोमेन को आॅपरेट करता है। यह डोमेन नाम के रजिस्ट्रारो से अलग होता है। डोमेन नामो को रजिस्टर करने का कार्य Internet Assigned Numbers Authorty या (IANA) नामक समिति द्वारा किया जाता है। यह समिति उच्च स्तरीय डोमेन नामो को स्वयं पंजीकृत करती है और शेष कार्य को विभिन्न संगठनो पर छोड देती है।
विभिन्न देशो के डोमेन नाम रजिस्टर करने वाले अनेक संगठन और वेबसाइट है। आप उनमे से किसी भी निर्धारित शुल्क देकर अपना डोमेन नाम पंजीकृत करा सकते है। उदाहरण के लिये भारत मे Yaho.com, GoDaddy.com, Candidinfo.com, Sify.com, Dotster.com, Register.com आदि अनेक वेबसाइटे यह कार्य करती है। उनका शुल्क अलग अलग होता है। डोमेन नाम पंजीकरण सामान्यतः एक साल के लिये किया जाता है। यह अवधि समाप्त होने से पहले ही आप फिर शुल्क देकर पंजीकरण बढा सकते है। वैसे आप एक साथ कई साल का शुल्क जमा करके भी अपना डोमेन नाम कई वर्ष के लिये पंजीकृत करा सकते है। कई वेबसाइट आपको निशुल्क डोमेन नाम देने का भी प्रस्ताव रखती है, परन्तु ऐसा करने से पहले आपको अच्छी तरह विचार कर लेना चाहिए।
2. वेब होस्टिंग- यह वेब पब्लिशिंग का सबसे महत्वपूर्ण भाग कहा जाता है। यह अपने आॅफिस या दुकान के लिये केाई जगह किराये पर लेने के समान है। जब आप अपनी वेबसाइट के डोमेन नाम का पंजीकरण करा लेते है और उसको डिजाइन कर लेते है, तो उसको किसी वेब सर्वर पर स्टोर करना ही वेब होस्टिंग कहा जाता है। यह कार्य किसी अच्छे वेब सर्वर पर ही किया जाता है, क्योंकि वे आपकी वेबसाइट को 24 घंटे सक्रिय रखते है और उसका उपयोग इंटरनेट पर सभी को उपलब्ध कराते है।
3. वेबसाइट डिजाइन और विकास- कोई वेबसाइट किसी विशेष विषय पर सूचनाओ का एक संग्रह होती है। किसी वेबसाइट को डिजाइन करने से हमारा तात्पर्य उसके वेब पेजो का निर्माण और उन्हे किसी विशेष रूप मे व्यवस्थित करना होता है। विभिन्न वेब पेजो से मिलकर ही कोई वेबसाइट बनती है। किसी वेब पेजे मे उन मे उन सूचनाओ कोई भाग होता है जिनके लिये वेबसाइट को बनाया गया है। इस प्रकार आप किसी वेबसाइट को एक पुस्तक के रूप मे देख सकते है, जिसके प्रत्येक पृष्ठ को एक वेब पेज माना जा सकता है।
4. प्रचार या प्रमोशन- किसी वेबसाइट का प्रचार निम्नलिखित विधियो से किया जाता है-
1. समाचार पत्रो या पत्रिकाओ मे विज्ञापन द्वारा।
2. रेडियो, टीवी. आदि पर विज्ञापन।
3. अन्य प्रसिध्द वेबसाइटो पर विज्ञापन देना।
4. अपनी साइट को सर्च इंजनो जैसे गूगल और याहू के साथ जोडना।
5. रखरखाव- किसी वेबसाइट की सफलता के लिये यह आवश्यक है कि उसमे नवीनता और रोचकता रहे ताकि उसके आगंतुक उसमे आते रहे। इसके लिये आपको अपनी वेबसाइट निरन्तर सुधारने और पुरानी जानकारी हटाकर नई जानकारियाॅ डालते रहने की आवश्यकता होती है। इसलिये अपनी वेबसाइट पर स्वयं भ्रमण करते रहना चाहिए तथा परिवर्तनो की आवश्यकता का पता लगाते रहना चाहिए। विशेष तौर पर आपके उत्पादो, सेवाओ और उनके मूल्यो की जानकारी नवीनतम होनी चाहिए।
1. डोमेन नाम का रजिस्ट्रेशन करना।
2. वेब होस्टिंग।
3. वेबसाइट डिजाइन और विकास।
4. प्रचार या प्रमोशन।
5. रखरखाव।
किसी सफल वेबसाइट के लिये ये सभी चरण महत्वपूर्ण है।
1. डोमेन नेम रजिस्ट्रेशन- किसी वेबसाइट का डोमेन नाम उसका ऐसा नाम या पता है जिससे इंटरनेट के उपयोगकर्ता द्वारा उसको पहचाना और देखा जाता है। वेब प्रकाशन का पहला चरण उस वेबसाइट के लिये कोई डोमेन नाम तय करना और किसी वेब सर्वर पर उस डोमेन नाम को पंजीकृत करना होता है।
डोमेन नेम चुनना- अपनी वेबसाइट के लिये डोमेन नाम का चयन आपको स्वयं करना होता है। यह नाम ऐसा होना चाहिये जो पहले से किसी अन्य वेबसाइट का ना हो और आपकी साइट के उददेश्य तथा सामाग्री का संकेत देता हो। सामान्यतः कोई कंपनी अपने नाम जैसा ही डोमेन नाम पंजीकृत कराता है यदि वह उपलब्ध हो। यदि वह उपलब्ध नही है तो उससे मिलता जुलता कोई नाम लिया जा सकता है, जो उपलब्ध हो।
वेबसाइट के लिये डोमेन नाम चुनते समय निम्नलिखित बातो को ध्यान मे रखना चाहिए-
1. डोमेन नेम ऐसा होना चाहिए जो आपका या आपकी कंपनी का या आपके ब्रांड का नाम हो। ऐसा करने से आपके ग्राहको को आपकी वेबसाइट तक पहुचना सरल होगा, क्योकि किसी भी व्यक्ति के लिये भिन्न नामो को याद रखना संभव नही होता है।
2. डोमेन नाम जितना छोटा हो, उतना ही अच्छा रहता है। छोटे नामो को याद रखना या टाइप करना भी सरल होता है। डोमेन नाम 67 अक्षरो जितने लंबे भी हो सकते है।
3. डोमेन नेम मे हाइफन (-) या डैश (-) का उपयोग सामान्यतया: नही होना चाहिए।
4. डोमेन नेम मे कैपीटल अक्षरो के प्रयोग से बचना चाहिए। सामान्यतः सभी डोमेन नाम छोटे अक्षरो मे रखे जाते है।
5. डोमेन नेम मे बहुवचन का प्रयोग नही होना चाहिए, क्योकि कई बार उपयोगकर्ता बहुवचन अर्थात अक्षर टाईप करना भूल जाते है। इससे गलत वेबसाइट खुल जाती है।
6. डोमेन नेम मे आपकी साइट के उददेश्य का भी पता चलता है। अतः यदि आपकी साइट परोपकारी या स्वयंसेवी संस्था है, तो आपको कभी भी .COM नाम नही लेना चाहिए। इसके बजाह ण्वतह वाला डोमेन नाम लेना चाहिए।
यदि आप इन बातो का ध्यान मे रखते हुए अपना डोमेन नाम तय करेगे तो आपकी वेबसाइट के सफल होने की अधिक संभावना होगी।
डोमेन नाम पंजीकृत कराना- डोमेन नेम रजिस्ट्रि जिसे नेटवर्क इनफाॅमेशन सेटंर जाता है, डोमेन नाम सिस्टम का एक भाग है जो डोमेन नामो को IP Address मे बदलता है। यह एक संगठन है जो डोमेन नाम के पंजीकरण का प्रबंध करता है।डोमेन नाम आवंटित करने की नीति बनाता है और उच्च स्तरीय डोमेन को आॅपरेट करता है। यह डोमेन नाम के रजिस्ट्रारो से अलग होता है। डोमेन नामो को रजिस्टर करने का कार्य Internet Assigned Numbers Authorty या (IANA) नामक समिति द्वारा किया जाता है। यह समिति उच्च स्तरीय डोमेन नामो को स्वयं पंजीकृत करती है और शेष कार्य को विभिन्न संगठनो पर छोड देती है।
विभिन्न देशो के डोमेन नाम रजिस्टर करने वाले अनेक संगठन और वेबसाइट है। आप उनमे से किसी भी निर्धारित शुल्क देकर अपना डोमेन नाम पंजीकृत करा सकते है। उदाहरण के लिये भारत मे Yaho.com, GoDaddy.com, Candidinfo.com, Sify.com, Dotster.com, Register.com आदि अनेक वेबसाइटे यह कार्य करती है। उनका शुल्क अलग अलग होता है। डोमेन नाम पंजीकरण सामान्यतः एक साल के लिये किया जाता है। यह अवधि समाप्त होने से पहले ही आप फिर शुल्क देकर पंजीकरण बढा सकते है। वैसे आप एक साथ कई साल का शुल्क जमा करके भी अपना डोमेन नाम कई वर्ष के लिये पंजीकृत करा सकते है। कई वेबसाइट आपको निशुल्क डोमेन नाम देने का भी प्रस्ताव रखती है, परन्तु ऐसा करने से पहले आपको अच्छी तरह विचार कर लेना चाहिए।
2. वेब होस्टिंग- यह वेब पब्लिशिंग का सबसे महत्वपूर्ण भाग कहा जाता है। यह अपने आॅफिस या दुकान के लिये केाई जगह किराये पर लेने के समान है। जब आप अपनी वेबसाइट के डोमेन नाम का पंजीकरण करा लेते है और उसको डिजाइन कर लेते है, तो उसको किसी वेब सर्वर पर स्टोर करना ही वेब होस्टिंग कहा जाता है। यह कार्य किसी अच्छे वेब सर्वर पर ही किया जाता है, क्योंकि वे आपकी वेबसाइट को 24 घंटे सक्रिय रखते है और उसका उपयोग इंटरनेट पर सभी को उपलब्ध कराते है।
3. वेबसाइट डिजाइन और विकास- कोई वेबसाइट किसी विशेष विषय पर सूचनाओ का एक संग्रह होती है। किसी वेबसाइट को डिजाइन करने से हमारा तात्पर्य उसके वेब पेजो का निर्माण और उन्हे किसी विशेष रूप मे व्यवस्थित करना होता है। विभिन्न वेब पेजो से मिलकर ही कोई वेबसाइट बनती है। किसी वेब पेजे मे उन मे उन सूचनाओ कोई भाग होता है जिनके लिये वेबसाइट को बनाया गया है। इस प्रकार आप किसी वेबसाइट को एक पुस्तक के रूप मे देख सकते है, जिसके प्रत्येक पृष्ठ को एक वेब पेज माना जा सकता है।
4. प्रचार या प्रमोशन- किसी वेबसाइट का प्रचार निम्नलिखित विधियो से किया जाता है-
1. समाचार पत्रो या पत्रिकाओ मे विज्ञापन द्वारा।
2. रेडियो, टीवी. आदि पर विज्ञापन।
3. अन्य प्रसिध्द वेबसाइटो पर विज्ञापन देना।
4. अपनी साइट को सर्च इंजनो जैसे गूगल और याहू के साथ जोडना।
5. रखरखाव- किसी वेबसाइट की सफलता के लिये यह आवश्यक है कि उसमे नवीनता और रोचकता रहे ताकि उसके आगंतुक उसमे आते रहे। इसके लिये आपको अपनी वेबसाइट निरन्तर सुधारने और पुरानी जानकारी हटाकर नई जानकारियाॅ डालते रहने की आवश्यकता होती है। इसलिये अपनी वेबसाइट पर स्वयं भ्रमण करते रहना चाहिए तथा परिवर्तनो की आवश्यकता का पता लगाते रहना चाहिए। विशेष तौर पर आपके उत्पादो, सेवाओ और उनके मूल्यो की जानकारी नवीनतम होनी चाहिए।
ISP (International Service Provider) इन्टरनेट सेवा
प्रदाता
इन्टरनेट
का कोई भी मालिक नहीं हैं | इसलिए
इन्टरनेट का पूरा खर्च किसी को वहन नही करना पड़ता, बल्कि
इन्टरनेट पर किये जाने वाले कार्य के बदले प्रत्येक User को
अपने हिस्से का भुगतान करना पड़ता हैं | नेटवर्क से सभी छोटे
तथा बड़े नेटवर्क जुड़े होते हैं तथा इनको जोड़ने पर होने वाले खर्च की राशि कहाँ से
लाये, यह निर्णय करते है| School, University और Company अपने कनेक्शन का भुगतान क्षेत्रीय
नेटवर्क को करती है तथा वह क्षेत्रीय नेटवर्क इस एक्सेस के लिए इन्टरनेट सेवा
प्रदाता को भुगतान करता है| वह कंपनी जो इन्टरनेट एक्सेस
प्रदान करती है इन्टरनेट सेवा प्रदाता (Internet Service Provider) कहलाती है| किसी अन्य कंपनी की तरह ही इन्टरनेट
सेवा प्रदाता अपनी सेवाओ के लिए User से पैसा लेती है|
internet Service Provider Company दो प्रकार का शुल्क लेती हैं|
1. इन्टरनेट प्रयोग करने के लिए|
2. इन्टरनेट कनेक्शन देने के लिए|
Users को इन्टरनेट
कनेक्शन लेने तथा इन्टरनेट प्रयोग करने का शुल्क ISP को देना
पड़ता है| ISP कंपनी Users से
समयावधि, दूरी, गति तथा डाटा डाउनलोड या अपलोड
की मात्रा के अनुसार शुल्क लेती है | BSNL, IDEA,
Reliance, Sify, Bharti, VSNL, Airtel, Vodafone
आदि इन्टरनेट सेवा प्रदाताओ के नाम हैं|
Internet Chatting
चैटिंग
इंटरनेट पर की जाने वाली एक रोचक क्रिया है। यह टेलीफोन पर बात करने के समान है।
अंतर केवल यह है कि बोलने की जगह हम अपनी बात या संदेश की बोर्ड पर टाईप करते है, जो तत्काल ही प्राप्तकर्ता के माॅनीटर
की स्क्रीन पर तुरंत ही दिया जाता है। तब प्राप्तकर्ता अपने की बोर्ड पर उसका
उत्तर टाईप करता है, जो हमारे माॅनीटर की स्क्रीन पर तुरंत
ही दिखा दिया जाता है। इस प्रकार बातचीत तब तक चलती रहती है। जब तक आप चाहते है।
इस तरह की चंटिंग को टेक्स्ट चैट कहा जाता है।
चैटिंग
चैट समूहो मे की जाती है। किसी चैट समूह को चैनल भी कहा जाता है। चैनल समान्यतः
विशेष विषयो पर केन्द्रित होते है जैसे-राजनीती, खेल, संगीत, फिल्म आदि। प्रत्येक चैनल का नाम ‘#’ चिन्ह से
प्रारंभ होता है। उदाहरण के लिये #politics एक चैनल भी हो
सकता है, जो राजनीति पर केन्द्रित हो। हम अपनी रूचि के चैट
समूह या चैनलो को इंटरनेट पर खोज सकते है। बहुत से प्रसिध्द व्यक्ति भी चैट समूहो
मे शामिल होते है।
किसी चैट
समूह मे शामिल होने वाले प्रत्येक व्यक्ति का एक उपनाम होता है। सामान्यतः लोग
अपने असली नाम की जगह किसी उपनाम का उपयोग करते है। इसलिये हम अपनी वास्तविक पहचान
बताये बिना सरलता से और स्वतंत्रता से चैटिंग कर सकते है। यदि कोई उपनाम ‘@’ चिन्ह से प्रारंभ हो रहा हो, जैसे -@robotman, तो वह किसी व्यक्ति के बजाय उस
प्रोग्राम का नाम होता है, जो उस चैट समूह को संचालित या
व्यवस्थित करता है।
चैटिंग
आपके लिये मनोरंजक भी हो सकती है और समय की बरबादी भी। यह आपके ऊपर निर्भर करता है
कि आप उसका किस रूप मे उपयोग कर रहे है। चैटिंग के लिये आपको ऐसे सर्वर पर Log On
करना चाहिए, जो इसकी
सुविधा देते है। ऐसी कई वेब साइट है, जो चैटिंग की सुविधा
उपलब्ध कराती है। चैटिंग के लिये कुछ विशेष सॉफ्टवेर भी उपलब्ध है, जिन्हे मैसेंजर कहा जाता है। आप उनमे Log On कर सकते है और अन्य व्यक्तियो
से Online गपशप कर सकते है। चैट सॉफ्टवेयर एक इंटरएक्टिव Log On होता है, अतः आप सरलता से चैटिंग कर सकते है। कुछ लोकप्रिय चैट सॉफ्टवेर के नाम निम्नलिखित है-
Yahoo Messanger
MSN Messanger
MSN Messanger
RedoffBol
चैट सुविधा उपलब्ध कराने वाली कुछ साइटो के नाम निम्नलिखित है-
चैट सुविधा उपलब्ध कराने वाली कुछ साइटो के नाम निम्नलिखित है-
http://chat.lycos.com
http://chat.sify.com
http://chat.yahoo.com
http://chat.123indea.com
http://www.chat-avenue.com
http://chat.sify.com
http://chat.yahoo.com
http://chat.123indea.com
http://www.chat-avenue.com
Remote login & Telnet Concept
Remote
login- वह Login जिससे एक User किसी Host
Computer से एक नेटवर्क की सहायता से इस तरह Connect होता है जैसे User Terminal और Host Computer
दोनो Directly जुडे हो और User Host
Computer User को Keybord और Mouse का
प्रयोग करने की Facility भी उपलब्ध कराता है। Remote
Login Desktop Sharing की तरह ही कार्य करता है। Remote
Login की सहायता से हम Office या घर के Computer
को (जो Host कहलाएगे) कही से भी Remote
User बनकर Access कर सकते है।
Remote Login के लिये निम्न 3 Components की आवश्यकता होती है-
Login Software
Internet Connection
Secure Desktop Sharing
Network
Remote login की आवश्यकता-
1. Remote Login को कार्य करने के लिये दोनो होस्ट और रिमोट यूजर को एक ही डेस्कटाप शेयरिंग साफ्टवेयर Install किया हो।
2. Remote Login तभी कार्य करेगा जब Host Computer की Power On हो, Host Internet से जुडा हो तथा Host Computer पर Desktop शेयरिंग साॅफ्टवेयर Run हो रहा हो। Host Computer से जुडने के लिये User को Desktop शेयरिंग साॅफ्टवेयर का वो ही Version प्रयोग करना होगा जो Host Computer पर Run हो रहा है। इसके पश्चात् सही Session ID और Password डालकर User Host Computer मे Remotely Login कर सकता है।
Login करने के पश्चात् User Host Computer के Keybord Control, Mouse Control सभी साॅफ्टवेयर और फाईलो को Access कर सकता है।
1. Remote Login को कार्य करने के लिये दोनो होस्ट और रिमोट यूजर को एक ही डेस्कटाप शेयरिंग साफ्टवेयर Install किया हो।
2. Remote Login तभी कार्य करेगा जब Host Computer की Power On हो, Host Internet से जुडा हो तथा Host Computer पर Desktop शेयरिंग साॅफ्टवेयर Run हो रहा हो। Host Computer से जुडने के लिये User को Desktop शेयरिंग साॅफ्टवेयर का वो ही Version प्रयोग करना होगा जो Host Computer पर Run हो रहा है। इसके पश्चात् सही Session ID और Password डालकर User Host Computer मे Remotely Login कर सकता है।
Login करने के पश्चात् User Host Computer के Keybord Control, Mouse Control सभी साॅफ्टवेयर और फाईलो को Access कर सकता है।
Telnet
Concept- टेलनेट एक पुरानी इंटरनेट सुविधा है, जिसमे आप किसी दूर स्थित कम्प्यूटर मे
लाॅग आॅन कर सकते है। दूसरे शब्दो मे यह आपको अपने कम्प्यूटर पर बैठे किसी दूर के
कम्प्यूटर का उपयोग करने की सुविधा देता है। इसको रिमोट लाॅगिंग भी कहा जाता है।
सामान्यतः कोई टेलनेट प्रोग्राम आपको दूसरे कम्प्यूटर के लिये एक पाठ्य आधारित
विडों देता है। आपको उस सिस्टम के लिये एक Log on दिया जाता है। यदि आपके सिस्टम
पर पहुचंने की अनुमति है, तो आप उस पर ठीक उसी प्रकार कार्य
कर सकते है, जैसे अपने कम्प्यूटर पर करते है। यह सुविधा उन
लोगो के लिये बहुत उपयोगी है जो दूसरे कम्प्यूटरो पर ऐसा कार्य करना चाहते है,
जो FTP आदि अन्य सुविधाओ के माध्यम से नही
किया जा सकता है।
स्पष्ट है
कि यह सुविधा सबके लिये खुली नही है। यह केवल अधिकृत लोगो को ही दी जाती है और
प्रत्येक टेलनेट कम्प्यूटर के बाहरी उपयोगकर्ताओ को ऐसी अनुमति देने के अपने नियम
होते है।
FTP प्रोटोकॉल
इंटरनेट
का सबसे लोकप्रिय तथा मुख्य उपयोग फाइलो को डाउनलोड करना है अर्थात इंटरनेट पर एक
कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर पर फाईलो को ट्रांसफर करना है। हजारो फाइले इंटरनेट
पर प्रत्येक दिन एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर पर ट्रांसफर होती है। इनमे से
अधिकतर फाईले इंटरनेट के File Transfer Protocol के माध्यम से ट्रांसफर होती है। इसे सामान्यतः संक्षिप्त रूप मे FTP कहते है। यह प्रोटोकाॅल इंटरनेट पर एक कम्प्यूटर से
दूसरे कम्प्यूटर पर फाईलो को अपलोड करने के लिये भी प्रयोग किया जा सकता है। FTP का मुख्य Competitor HTTP है तथा वह दिन दूर नही जब FTP
Server के स्थान पर HTTP Server कार्य करेगा।
लेकिन अभी अक्सर FTP ही फाईलो को डाउनलोड करने के लिये प्रयोग
किया जाता है। इंटरनेट पर फाईलो को डाउनलोड करने के लिये एक समस्या यह है कि कुछ
फाईले इतनी बडी होती है कि उन्हे Download करने मे काफी समय लगता है। इस समस्या का समाधान करने
के लिये FTP Server पर Space बचाने
के लिये तथा फाईलो की ट्रांसफर स्पीड बढाने के लिये सामान्यतः फाईलो को ब्वउचतमे
किया जाता है। FTP TCP/IP Stack के Top पर Execute होता है तथा नेटवर्कड स्टेशनो के मध्य
फाईलो को ट्रांसफर करने के लिये एप्लीकेशनो तथा Users के लिये OSI Protocols का प्रयोग करता है। Web Server की तरह ही Internet FTP Server की Installation
को करता है। बहुत सी आॅर्गेनाइजेशनस् फाईलो को वितरित करने के लिये FTP
Server का प्रयोग करती है। जब एक User कुछ Download
करने के लिये लिंक होता है तो वास्तव मे यह लिंक FTP को Redirect होता
है न कि HTTP को!
FTP Server को दो FTP भागो मे विभाजित किया गया है-
1. Anonymous Server
2. Non Anonymous Server
1. Anonymous Server- FTP का अत्याधिक Common प्रयोग Anonymous Server है। FTP Sites जो Anonymous FTP को Allow करती है, इनके लिये एक्सेस करने के लिये पासवर्ड की आवश्यकता नही होती है। आपको केवल Anonymous के रूप मे Login करना है तथा अपना E-Mail Address पासवर्ड की तरह Enter करना है।
2. Non Anonymous Server- यदि हम Non Anonymous Server का प्रयोग करते है तो हमे पासवर्ड को एक्सेस करने की आवश्यकता होती है।
FTP Server को दो FTP भागो मे विभाजित किया गया है-
1. Anonymous Server
2. Non Anonymous Server
1. Anonymous Server- FTP का अत्याधिक Common प्रयोग Anonymous Server है। FTP Sites जो Anonymous FTP को Allow करती है, इनके लिये एक्सेस करने के लिये पासवर्ड की आवश्यकता नही होती है। आपको केवल Anonymous के रूप मे Login करना है तथा अपना E-Mail Address पासवर्ड की तरह Enter करना है।
2. Non Anonymous Server- यदि हम Non Anonymous Server का प्रयोग करते है तो हमे पासवर्ड को एक्सेस करने की आवश्यकता होती है।
E-Mail क्या हैं ?
इलैक्ट्रानिक
मेल या संक्षेप मे ई-मेल इंटरनेट की सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली सेवा है।
इलैक्ट्रानिक मेल एक ऐसा इलैक्ट्रानिक संदेश होता है, जो किसी नेटर्वक से जुडे विभिन्न
कम्प्यूटरो के बीच भेजा व प्राप्त किया जाता है। ई-मेल का उपयोग व्यक्तियो या
व्यक्तियो के समूहो के बीच जो भौगोलिक रूप से हजारो मील दूर भी हो सकता है। लिखित
संदेश भेजने मे किया जाता है। ई-मेल को मेल सर्वर के माध्यम से भेजा जाता और
प्राप्त किया जाता है। कोई मेल सर्वर ऐसा कम्प्यूटर होता है। जिसका कार्य ई-मेलो
को प्रोसेस करना और उचित क्लाइंट कम्प्यूटरो को भेजना होता है।
वेब पते की तरह हमारे ई-मेल पते भी होते है, जिस पर ई-मेल भेजी जाती है। ब्राउजर प्रोग्राम की तरह ई-मेल भेजने और प्राप्त करने के लिये विशेष ई-मेल प्रोग्राम या साफ्टवेयर होते है जैसे माइक्रोसाफ्ट आउटलुक तथा आउटलुक एक्सप्रेस आदि। और हम कुछ वेबसाइट की सहायता से भी अपना ई-मेल भेज तथा प्राप्त कर सकते है।
E-Mail भेजने की प्रक्रिया- यदि आप किसी को ई-मेल संदेश भेजना चाहते है, तो आप उसे आफलाइन तैयार कर सकते है। संदेश बनाने के लिये, Messages मेन्यु मे New Message आदेश अथवा स्टैण्डर्ड टूलबार मे New Mail बटन को क्लिक कीजिए। इससे नये संदेश की विंडो आपके सामने प्रदर्शित हो जाएगी।इस विंडो मे To: बाक्स मे प्राप्तकर्ता का ई-मेल पता टाईप कीजिए और संदेश का विषय Subject: बाक्स मे टाईप कीजिए। CC: बाक्स मे उनका ई-मेल पता टाईप करके आप इस संदेश की प्रतिलिपि अन्य लोगो को भी भेज सकते है।
वेब पते की तरह हमारे ई-मेल पते भी होते है, जिस पर ई-मेल भेजी जाती है। ब्राउजर प्रोग्राम की तरह ई-मेल भेजने और प्राप्त करने के लिये विशेष ई-मेल प्रोग्राम या साफ्टवेयर होते है जैसे माइक्रोसाफ्ट आउटलुक तथा आउटलुक एक्सप्रेस आदि। और हम कुछ वेबसाइट की सहायता से भी अपना ई-मेल भेज तथा प्राप्त कर सकते है।
E-Mail भेजने की प्रक्रिया- यदि आप किसी को ई-मेल संदेश भेजना चाहते है, तो आप उसे आफलाइन तैयार कर सकते है। संदेश बनाने के लिये, Messages मेन्यु मे New Message आदेश अथवा स्टैण्डर्ड टूलबार मे New Mail बटन को क्लिक कीजिए। इससे नये संदेश की विंडो आपके सामने प्रदर्शित हो जाएगी।इस विंडो मे To: बाक्स मे प्राप्तकर्ता का ई-मेल पता टाईप कीजिए और संदेश का विषय Subject: बाक्स मे टाईप कीजिए। CC: बाक्स मे उनका ई-मेल पता टाईप करके आप इस संदेश की प्रतिलिपि अन्य लोगो को भी भेज सकते है।
संलग्नक
के साथ किसी E-Mail को
भेजने के लिये निम्नलिखित Steps का अनुसरण करते है
Step 1:अपने सिस्टम को इंटरनेट से कनेक्ट करने
के पश्चात् इंटरनेट एक्सप्लोलर को खोलते है। इसमे एड्रेस बार मे उस वेब साइट को type करते है जिसमे हमारी E-Mail
Id है, जैसे यहा पर हम mastercomputer0786@gmail.com को type करके Enter key press करते है।
Step 2:इसके पश्चात् हम User Name Box मे अपनी Email Id तथा Password
Box मे Password लिखते है तथा Enter
key Press करते है। इसके पश्चात् स्क्रीन पर हमारा Home Page
खुलता है।
Step 3: इसमे हम Write Mail/Compose Mail आॅप्शन पर क्लिक करते है तो स्क्रीन पर एक नयी Window खुलती है, इसमे
प्रथम Box मे वह Mail Id लिखते है जिसके पास Attachment को संलग्न करना है। इसके पश्चात् ।Attachment बटन पर
क्लिक करते है तो स्क्रीन पर Attachment Box खुलता है।
Step 4: इस बाक्स मे Browse Button के माध्यम से उस फाइल को Browse करके Attach हो जाती है।
Step 5: इसके पश्चात् Send Button पर क्लिक करते है। इस तरह संलग्न की गयी फाइल उस ID पर पहुच जाती है जो हमने Mention की है।
Step 5: इसके पश्चात् Send Button पर क्लिक करते है। इस तरह संलग्न की गयी फाइल उस ID पर पहुच जाती है जो हमने Mention की है।
E-Mail प्राप्त
करने की प्रक्रिया- E-Mail को प्राप्त करने के लिये
निम्नलिखित Steps का अनुसरण करते है-
Step 1:अपने सिस्टम को इंटरनेट से कनेक्ट करने के पश्चात् इंटरनेट एक्सप्लोलर को खोलते है। इसमे एड्रेस बार मे उस वेब साइट को type करते है जिसमे हमारी E-Mail Id है, जैसे यहा पर हम mastercomputer0786@gmail.com को type करके Enter key pres करते है।
Step 1:अपने सिस्टम को इंटरनेट से कनेक्ट करने के पश्चात् इंटरनेट एक्सप्लोलर को खोलते है। इसमे एड्रेस बार मे उस वेब साइट को type करते है जिसमे हमारी E-Mail Id है, जैसे यहा पर हम mastercomputer0786@gmail.com को type करके Enter key pres करते है।
Step 2: इसके पश्चात् हम User Name Box मे अपनी Email Id तथा Password
Box मे Password लिखते है तथा Enter
key Press करते है। इसके पश्चात् स्क्रीन पर हमारा Home Page
खुलता है।
Step 3: इसके पश्चात् हमे जो भी Mail किसी के द्वारा भेजे गये है उसे हम अपने Inbox
मे जाकर प्राप्त कर सकते है।
Internet Connectivity
इंटरनेट
से जुडने के लिये कई तरीके है। इसके लिये आपको अपना कम्प्यूटर किसी सर्वर से जोडना
होता है। इंटरनेट सर्वर कोई ऐसा कम्प्यूटर है, जो दूसरे कम्प्यूटरो से भेजी गई प्राथनाओ को स्वीकार करता है
और उन्हे उनकी जानकारी उपलब्ध कराता है। ये सर्वर कुछ अधिकृत कंपनियो द्वारा
स्थापित किये जाते है, जिन्हे इंटरनेट सेवा प्रदाता कहा जाता
है। ऐसी सेवा देने वाली अनेक कंपनीयां है, आपके पास किसी
इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी का कनेक्शन होना चाहिए। जब आप अपने क्षेत्र मे कार्य
करने वाली किसी इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी से आवेदन करते है और आवश्यक शुल्क जमा
करते है, जिसके द्वारा आप उस कंपनी के सर्वर से अपने
कम्प्यूटर को जोड सकते है। इंटरनेट से जुडने की निम्न विधि है.
1. PSTN
(Public Services Telephone Network)- सामान्य टैलीफोन लाइन द्वारा, जो आपके कम्प्यूटर को डायल अप कनेक्शन के माध्यम से इंटरनेट
सेवा प्रदाता कंपनी के सर्वर से जोड देती है। कोई डायल अप कनेक्शन एक अस्थायी
कनेक्शन होता है, जो आपके कम्प्यूटर और आईएसपी सर्वर के बीच
बनाया जाता है। डायल अप कनेक्शन मोडेम का उपयोग करके बनाया जाता है, जो टेलीफोन लाइन का उपयोग आईएसपी सर्वर का नंबर डायल करने मे करता है। ऐसा
कनेक्शन सस्ता होता है, परन्तु बहुत तेज होता है।
2. Leased (लीज लाइन के द्वारा)- लीज लाइन ऐसी सीधी टेलीफोन लाइन होती है, जो आपके कम्प्यूटर को आईएसपी के सर्वर
से जोडती है। यह इंटरनेट से सीधे कनेक्शन के बराबर है और 24 घंटे
उपलब्ध रहती है। यह बहुत तेज लेकिन महॅगी होती है।
3.V-SAT (वी-सैट)- V-SAT Very Small Apertune Terminal का
संक्षिप्त रूप है। इसे Geo-Synchronous Satellite के रूप मे
वर्णन किया जा सकता है जो Geo-Synchronous Satellite से जुडा
होता है तथा दूरसंचार एवं सूचना सेवाओ, जैसे.आॅडियो, वीडियो, ध्वनि द्वारा इत्यादि के लिये प्रयोग किया
जाता है। यह एक विशेष प्रकार का Ground Station है जिसमे
बहुत बडे एंटीना होते है। जिसके द्वारा V-SAT के मध्य सूचनाओ
का आदान प्रदान होता है, Hub कहलाते है। इनके द्वारा इन्हे
जोडा जाता है।
Domain name & URL
Domain
name- डोमेन नाम वेबसाइट के उद्येश्य को
पहचानता है। उदाहणार्थ, यहाॅ .com
डोमेन नाम बताता है कि यह एक व्यापारिक साइट है। इसी प्रकार लाभ न
कमाने वाले संगठन .org तथा स्कूल तथा विश्वविद्यालय आदि .edu डोमेन नामो का उपयोग करते है। नीचे दी गई
सूची मे URL मे
सामान्यतया प्रयोग किये जाने वाले डोमेन नाम और उनका अर्थ बताया गया है।
डोमेन नेम जुडाव उपयोग करने वाले
समूह/व्यक्ति
com व्यापारिक लाभ कमाने वाली कंपनियां
edu शैक्षिक शिक्षा संस्थान
Gov सरकारी सरकारी संस्थाये तथा विभाग
Mil सैन्य रक्षा संस्थाये तथा विभाग
Net नेटवर्के इंटरनेट सेवा प्रदाता तथा नेटवर्क
Co कंपनी सूचीबध्द कंपनीया
Org संगठन लाभ न कमाने वाले या धर्मार्थ संगठन
com व्यापारिक लाभ कमाने वाली कंपनियां
edu शैक्षिक शिक्षा संस्थान
Gov सरकारी सरकारी संस्थाये तथा विभाग
Mil सैन्य रक्षा संस्थाये तथा विभाग
Net नेटवर्के इंटरनेट सेवा प्रदाता तथा नेटवर्क
Co कंपनी सूचीबध्द कंपनीया
Org संगठन लाभ न कमाने वाले या धर्मार्थ संगठन
URL- किसी वेबसाइट का अद्वितीय नाम या पता, जिससे उसे इंटरनेट पर जाना, पहचाना और उपयोग किया जाता है, उसका URL कहा जाता है। इसे Uniform Resource Locator भी कहा
जाता है। किसी वेब पते का सामान्य रूप निम्न प्रकार होता है।
Type://address
यहा type उस सर्वर का type बताता है, जिससे वह फाइल उपलब्ध है और Address उस साइट का पता बताता है। उदाहरण के लिये एक वेब पोर्टल के URL http://www.yahoo.com मे http सर्वर का type है और www.yahoo.com उसका पता है। जब हम किसी वेबसाइट को खोलना चाहते है तो इसका URL पते के बाक्स मे टाइप किया जाता है। यदि कोई सर्वर टाईप नही दिया जाता, तो उसे http मान लिया जाता है। हम किसी वेब पेज का पाथ उसकी वेबसाइट के यूआरएल मे जोडकर उस वेब पेज को सीधे भी खोल सकते है।
किसी वेबसाइट का पूरा URL इन सभी भागो के बीच मे डाट (.) लगाकर जोडने से बनता है। केवल प्रोटोकाल के नाम के बाद एक कोलन (:) और दो स्लेश (//) लगाये जाते है, जैसे-http://www.yahoo.com।
यहा type उस सर्वर का type बताता है, जिससे वह फाइल उपलब्ध है और Address उस साइट का पता बताता है। उदाहरण के लिये एक वेब पोर्टल के URL http://www.yahoo.com मे http सर्वर का type है और www.yahoo.com उसका पता है। जब हम किसी वेबसाइट को खोलना चाहते है तो इसका URL पते के बाक्स मे टाइप किया जाता है। यदि कोई सर्वर टाईप नही दिया जाता, तो उसे http मान लिया जाता है। हम किसी वेब पेज का पाथ उसकी वेबसाइट के यूआरएल मे जोडकर उस वेब पेज को सीधे भी खोल सकते है।
किसी वेबसाइट का पूरा URL इन सभी भागो के बीच मे डाट (.) लगाकर जोडने से बनता है। केवल प्रोटोकाल के नाम के बाद एक कोलन (:) और दो स्लेश (//) लगाये जाते है, जैसे-http://www.yahoo.com।
Internet & Intranet
Internet & Intranet-ये समान दिखने वाले दोनो ही शब्द
कम्प्यूटर नेटवर्का को व्यक्त करते है। दोनो की कार्यप्रणाली भी लगभग समान होती है,
परन्तु दोनो मे कई मौलिक अंतर भी होते है। जो निम्न है- इंटरनेट (Internet)-
1. इंटरनेट नेटवर्का का नेटवर्क है। इसमे विभिन्न प्रकार के नेटवर्काे (LAN, MAN, WAN) को मिलाकर एक नेटवर्क तैयार किया जाता है।
1. इंटरनेट नेटवर्का का नेटवर्क है। इसमे विभिन्न प्रकार के नेटवर्काे (LAN, MAN, WAN) को मिलाकर एक नेटवर्क तैयार किया जाता है।
2. इंटरनेट का लाभ कोई भी व्यक्ति उठा सकता है।
3. इंटरनेट का कोई मालिक नही होता है।
4. इसका Use बडे पैमाने पर किया जाता है।
इंट्रानेट (Intranet)
1. इंट्रानेट मुख्य रूप से लोकल एरिया नेटवर्क (LAN) से मिलकर बना होता है।
1. इंट्रानेट मुख्य रूप से लोकल एरिया नेटवर्क (LAN) से मिलकर बना होता है।
2. इंट्रानेट का लाभ केवल उसका स्वामी संगठन या कंपनी के
कर्मचारी ही उठा सकते है।
3. इंट्रानेट का कोई न कोई मालिक भी होता है।
3. इंट्रानेट का कोई न कोई मालिक भी होता है।
4. इसका Use छोटे पैमाने पर किया जाता है।
ISP & VSAT
ISP-Internet की सेवायें उपलब्ध कराने वाली संख्या को ISP या Internet
Service Provider कहते है। ISP, इंटरनेट का
गेटवे है ज्यादातर Cases मे हम PC Modem केे द्वारा कनेक्ट होते है। Standard Telephone Line के द्वारा अपने ISP के Modem को
कनेक्ट करते है। ज्यादातर कंपनीयां तथा संस्थान ये सेवायें प्रदान करती है। ये
कंपनीयां इंटरनेट सेवा प्रदान करने के लिये राशि लेती है। ये दो तरह से राशि ली
जाती है। भारत मे मुख्य रूप से BSNL, इस Service को उपलब्ध कराती है। इसके अतिरिक्त सत्यम, रिलाइंस
कंपनीयां भी ये सर्विस उपलब्ध कराती है।
VSAT- V-SAT को Very Small Aperture Terminal का संक्षिप्त रूप है इसे Intelligent Earth Station के रूप मे वर्णन किया जा सकता है। जो Geo-Synchronous Stellite से जुडा होता है तथा दूरसंचार एवं सूचना सेवाओ जैसे-Audio, Video ध्वनि डाटा इत्यादि के लिये प्रयोग किया जाता है। यह एक विशेष प्रकार का Ground Station है जिसमे बडे एन्टीना होते है। जिसके द्वारा V-SATS के मध्य सूचनाओ का आदान प्रदान होता है, Hub कहलाते है (इनके द्वारा इन्हे जोडा जाता है।)
VSAT- V-SAT को Very Small Aperture Terminal का संक्षिप्त रूप है इसे Intelligent Earth Station के रूप मे वर्णन किया जा सकता है। जो Geo-Synchronous Stellite से जुडा होता है तथा दूरसंचार एवं सूचना सेवाओ जैसे-Audio, Video ध्वनि डाटा इत्यादि के लिये प्रयोग किया जाता है। यह एक विशेष प्रकार का Ground Station है जिसमे बडे एन्टीना होते है। जिसके द्वारा V-SATS के मध्य सूचनाओ का आदान प्रदान होता है, Hub कहलाते है (इनके द्वारा इन्हे जोडा जाता है।)
Protocols and Portals
Protocols- इंटरनेट पर सुचारू रूप से कार्य करने के लिये विभिन्न
तकनीक की आवश्यकता होती है। इनमे से वेब प्रोटोकाल मुख्य भाग है। इंटरनेट को सुचारू
व सफल बनाने मे वेब प्रोटोकाल का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इंटरनेट पर विभिन्न
प्रोटोकाॅल का प्रयोग होता है अतः इन्हे वेब प्रोटोकाॅल कहा जाता है।
Types of Protocols-
1. HTTP – Hyper Text Transfer Protocol
2. FTP – File Transfer Protocol
3. POP – Post Office protocol
4. UDP – User Datagram protocol
5. SMTP – Simple Mail Transfer Protocol
Portals- portal का अर्थ Gateway होता है। एक Internet Portal वह वेबसाइट है जो कि Browsing का शुरूआती होती है। portal आमतौर पर Search Engines या Websites की बडी Directories होती है। कुछ मुख्य पोर्टल के नाम है- yahoo, Netscape, Altavista, MSN और AOL.com portal का मुख्य कार्य यूजर को उसकी Intrest की Sites की सूची प्र्रदान करना है परन्तु आजकल portals बहुत सारी जानकारिया भी उपलब्ध कराते है। Web Portals हमे कई प्रकार की Services भी प्रदान करते है।
जैसे- E-mail, Search Engine, Forums, Online Shopping Malls, etc.
Types Of Portals-
1. Web Searching Portals
2. E-Commerce Portals
3. E-Learning Portals
4. Government Portals
5. Other Portals
1. HTTP – Hyper Text Transfer Protocol
2. FTP – File Transfer Protocol
3. POP – Post Office protocol
4. UDP – User Datagram protocol
5. SMTP – Simple Mail Transfer Protocol
Portals- portal का अर्थ Gateway होता है। एक Internet Portal वह वेबसाइट है जो कि Browsing का शुरूआती होती है। portal आमतौर पर Search Engines या Websites की बडी Directories होती है। कुछ मुख्य पोर्टल के नाम है- yahoo, Netscape, Altavista, MSN और AOL.com portal का मुख्य कार्य यूजर को उसकी Intrest की Sites की सूची प्र्रदान करना है परन्तु आजकल portals बहुत सारी जानकारिया भी उपलब्ध कराते है। Web Portals हमे कई प्रकार की Services भी प्रदान करते है।
जैसे- E-mail, Search Engine, Forums, Online Shopping Malls, etc.
Types Of Portals-
1. Web Searching Portals
2. E-Commerce Portals
3. E-Learning Portals
4. Government Portals
5. Other Portals
Search Engine (सर्च इंजन)
वेबसाइट
मे सर्च इंजन एक अत्याधिक लोकप्रिय तथा सुविधाजनक प्रोग्राम है। सर्च इंजन एक ऐसा
प्रोग्राम है जो इंटरनेट पर उपलब्ध सूचनाओ मे से किसी विशेष सूचना को ढूढकर हमारी
स्क्रीन पर प्रदर्शित करता है, जैसे किसी संस्था, कंपनी, काॅलेज,
विश्वविद्यालय इत्यादि के बारे मे हमे कोई जानकारी प्राप्त करनी है
तो इसके लिये हम Search Tool का प्रयोग करते है तथा इनमे
से जिसके बारे मे विस्तृत जानकारी प्राप्त करना चाहते है वह जानकारी प्राप्त कर
सकते है। विभिन्न प्रकार के निम्नलिखित सर्च इंजन इंटरनेट पर उपलब्ध है।
Yahoo
Altavista
Lycos
HotBot
Dogpile
Google
यह सभी सर्च इंजन काॅफी
लोकप्रिय है। इनमे से सबसे अधिक लोकप्रिय तथा अत्याधिक प्रयोग किया जाने वाला सर्च
इंजन Google है।
गूगल मे किसी सूचना को Search करने के लिये निम्नलिखित Steps
को Follow करते है-
Step 1 : वेब ब्राउजर मे वेबसाइट के URl को Type करते है तथा Enter Key को Press करते है।
Step 2 : इसके पश्चात् गूगल की Website का Home page स्क्रीन पर प्रदर्शित होता है।
Step 3 : गूगल के होम पेज प्रदर्शित Search Box मे उस शब्द को Type करते है जिसको सर्च करना है, जैसे किसी विश्वविद्यालय, कंपनी का नाम इत्यादि। इसके बाद Search Button पर Click करते है।
Step 4 : Search Box मे डाले गये शब्द के अनुरूप सूचना तथा लिंक Screen पर प्रदर्शित होते है।
Step 1 : वेब ब्राउजर मे वेबसाइट के URl को Type करते है तथा Enter Key को Press करते है।
Step 2 : इसके पश्चात् गूगल की Website का Home page स्क्रीन पर प्रदर्शित होता है।
Step 3 : गूगल के होम पेज प्रदर्शित Search Box मे उस शब्द को Type करते है जिसको सर्च करना है, जैसे किसी विश्वविद्यालय, कंपनी का नाम इत्यादि। इसके बाद Search Button पर Click करते है।
Step 4 : Search Box मे डाले गये शब्द के अनुरूप सूचना तथा लिंक Screen पर प्रदर्शित होते है।
Web Browser (वेब ब्राउजर)
वेब
ब्राउजर साॅफ्टवेयर है जिसका प्रयोग www को नेवीगेट तथा वेब पेजो केा देखने के
लिये करते है। वेब ब्राउजर एक मल्टीफंक्शन पैकेज है, जिसे वेब एक्सेस करने, फाइलो
को डाउनलोड करने तथा मल्डीमीडिया हाइपर टैक्स्ट डाॅक्यूमेन्टो केा प्रदर्शित करने
के लिये प्रयोग किया जाता है। वेब ब्राउजर के माध्यम से वेबसाइट को कनेक्ट करने के
लिये निम्नलिखित Steps को follow करते है-
Step1 : वेब ब्राउजर मे
वेब साइट के URL को Type करते है जैसे- www.CyberDairy.com!
Step 2 : ब्राउजर वेब सर्वर से कनेक्शन बनाता है।
Step 3 : वेब सर्वर Resquest को रिसीव करता है।
Step 2 : ब्राउजर वेब सर्वर से कनेक्शन बनाता है।
Step 3 : वेब सर्वर Resquest को रिसीव करता है।
Step 4 : वेब
ब्राउजर आपकी स्क्रीन पर वेब पेज को प्रदर्शित करता है तथा ब्राउजर और सर्वर के
बीच कनेक्शन क्लोज हो जाता है। हालांकि विभिन्न प्रकार के वेब ब्राउजर बाजार मे
उपलब्ध है लेकिन मुख्य रूप से प्रयोग होने वाले वेब ब्राउजर निम्न है-
1. Microsoft Internet Explorers
2. Netscape navigator
3. Google Chrome
4. Mozilla Firefox
5. Opera Mini
2. Netscape navigator
3. Google Chrome
4. Mozilla Firefox
5. Opera Mini
client server architecture (क्लाइंट सर्वर आर्किटेक्चर)
लोकल
एरिया नेटवर्किग मे उच्च लेवल की शेयर्ड डिवाइस प्रोसेसिंग को इमज्र्ड करने के
प्रकम के लिये क्लाइंट सर्वर आर्किटेक्चर के कान्सेप्ट को विकसित किया गया है। जहा
पर कम्प्यूटरो की अधिकता हो इस प्रकार के वातावरण के लिये क्लाइंट सर्वर
आर्किटेक्चर को तैयार किया गया था। उदाहणार्थ, बहुत सारे कम्प्यूटरो को आपस मे नेटर्वक तकनीक के द्वारा जोड
दिये जाते है। इनमे किसी एक कम्प्यूटर को Workstation बना देते है। Server पर इन सभी कम्प्यूटरो की फाइले सेव
होती है तो ऐसे माडॅल को Client Server माडल कहते है। इस माडल
मे एक या एक से अधिक कम्प्यूटर क्लाइंट होते है तथा Server एक होता है। इस माडल मे क्लाइंट अपनी
रिक्वेस्ट नेटर्वक के द्वारा सर्वर पर भेजता है तथा Server उस
रिक्वेस्ट को Response करता है। इस तरह का नेटर्वक संसाधनो
का साझा उपयोग करने मे मदद करता है। इस तरह के माडल मे हम हार्डवेयर तथा साफ्टवेयर
को Share कर सकते है। उदाहरणतः प्रिटंर को Server से Connect कर
देते है तो फिर किसी भी वर्कस्टेशन से किसी भी फाइल का प्रिटंआउट निकाल सकते है।
क्लाइंट
प्रक्रिया (Client Process)- क्लाइंट सर्वर आर्किटेक्चर मे, क्लाइंट प्रोसेस एक प्रोसेस एक
प्रोग्राम है, जो सर्वर प्रोसेस प्रोग्राम को एक रिक्वेस्ट
भेजता है। क्लाइंट प्रोग्राम सामान्यतः Application के User
Interface हिस्से को व्यवस्थित करता है, यूजर
के द्वारा प्रिविस्ट किये गये डाटा को Valid घोषित करता है
तथा सर्वर प्रोग्राम केा आग्रह भेजता है तथा कभी कभी व्यापार लाजिक को क्रियान्वित
करता है। क्लाइंट प्रोसेस एप्लीकेशन फ्रन्ट.एंड होता है जिसे प्रयोक्ता देखता है
तथा उसके साथ संवाद करता है। क्लाइंट वर्कस्टेशन का एक मुख्य तत्व इसका ग्राफिकल
यूजर इन्टरफेस है।
सर्वर प्रक्रिया (Server Process)- क्लाइंट सर्वर आर्किटेक्चर मे, सर्वर प्रोसेस एक ऐसा प्रोग्राम है, जो क्लाइंट द्वारा रिक्वेस्ट किये गये कार्य को पूरा करता है। आमतौर पर सर्वर प्रोग्राम क्लाइंट प्रोग्राम से रिक्वेस्ट प्राप्त करता है तथा क्लाइंट को Response करता है। सर्वर आधारित प्रोसेस नेटर्वक की दूसरी मशीन पर भी चल सकता है। यह सर्वर हास्ट आपरेटिंग सिस्टम या नेटर्वक फाइल सर्वर हो सकता है। सर्वर को फिर File System सेवाएं तथा एप्लीकेशन प्रदान किया जाता है तथा कुछ स्थितियो मे कोई दूसरा डेक्सटाॅप मशीन एप्लीकेशन सेवाएं प्रदान करता है।
सर्वर प्रक्रिया (Server Process)- क्लाइंट सर्वर आर्किटेक्चर मे, सर्वर प्रोसेस एक ऐसा प्रोग्राम है, जो क्लाइंट द्वारा रिक्वेस्ट किये गये कार्य को पूरा करता है। आमतौर पर सर्वर प्रोग्राम क्लाइंट प्रोग्राम से रिक्वेस्ट प्राप्त करता है तथा क्लाइंट को Response करता है। सर्वर आधारित प्रोसेस नेटर्वक की दूसरी मशीन पर भी चल सकता है। यह सर्वर हास्ट आपरेटिंग सिस्टम या नेटर्वक फाइल सर्वर हो सकता है। सर्वर को फिर File System सेवाएं तथा एप्लीकेशन प्रदान किया जाता है तथा कुछ स्थितियो मे कोई दूसरा डेक्सटाॅप मशीन एप्लीकेशन सेवाएं प्रदान करता है।
वर्ल्ड वाइड वेब की कार्यप्रणाली
वर्ल्ड वाईड वेब मे सूचनाओ को वेबसाईट के रूप मे रखा जाता है।
ये वेबसाइटे वेब सर्वर पर हाईपरटैक्स्ट फाइलो को संग्रहित होती है। वर्ल्ड वाईड वेब की एक नाम प्रणाली हैै, जिसके द्वारा प्रत्येक वेबसाइट को एक विशेष नाम दिया जाता है। उसी नाम से
उसे वेब पर पहचाना जाता है। किसी वेबसाइट के नाम को उसका URL (Uniform
Resource Locator) भी कहा जाता है।
जब हम
किसी वेबसाइट को खोलना चाहते है, ब्राउजर प्रोगा्रम के पते वाले बाॅक्स या एड्रेस बार मे उसका नाम या URl भरते है। इस नाम की सहायता से ब्राउजर प्रोग्राम उस सर्वर
तक पहुचता है जहाॅ वह फाइल या वेबसाइट स्टोर की गयी है और उससे एक वेबपेज प्राप्त
करने के बाद हमारे कम्प्यूटर पर ला देता है। उस सूचना को व्राउजर प्रोग्राम
माॅनीटर की स्क्रीन पर प्रदर्शित कर देता है।
उस
वेबसाइट पर कई हाइपरलिंक भी हो सकते है। प्रत्येक हाइपरलिंक किसी अन्य वेबपेज या
वेबसाइट का URL बताता
है। उस लिंक को क्लिक करने पर ब्राउजर उसी वेबपेज या वेबसाइट तक पहुचकर उसे
उपयोगकर्ता को उपलब्ध करा देता है। इस प्रकार उपयोगकर्ता किसी वेबसाइट को देख सकता
है, जिसका URL या Name उसे पता हो।
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